ईशान(उत्तर-पूर्व)दिशा के स्वामी भगवान रुद्र (शिव) तथा प्रतिनिधि ग्रह बृहस्पति हैं। भूखण्ड के ईशान दिशा में मार्ग हो तो भवन ईशानमुखी अर्थात ईशान्यभिमुख होता है। इस प्रकार का भूखण्ड बुद्धिमान संतान तथा शुभ फल देने वाला होता है। ईशान मुखी भूखण्ड पर निर्माण करते समय निम्न वास्तु सिद्धांतों का पालन करना चाहिए-
1- ईशानमुखी भूखण्ड ऐश्वर्य लाभ, वंश वृद्धि, बुद्धिमान संतान व शुभ फल देने वाला है। ऐसे भूखण्ड पर निर्माण करते समय ध्यान रखें कि ईशान कोण कटा व ढका हुआ न हो। प्रयास करें कि प्रत्येक कक्ष में ईशान कोण न घटे।
2- ईशानमुखी भवन में ईशान कोण सदैव नीचा रहना चाहिए। ऐसा करने से सुख-सम्पन्नता व ऐश्वर्य लाभ होगा।
3- ईशान कोण बंद न करें न कोई भारी वस्तु रखें। ईशान मुखी भूखण्ड में आगे का भाग खाली रखें तो शुभ रहेगा।
4- भवन के चारों ओर की दीवार बनाएं तो ईशान दिशा या पूर्व, उत्तर की ओर ऊंची न रखें।
5- ईशान के हिस्से को साफ रखें, यहां कूड़ा-कचरा, गंदगी आदि न डालें। झाड़ू भी न रखें।
6- ईशान मुखी भूखण्ड के सम्मुख नदी, नाला, तालाब, नहर तथा कुआं होना सुख, सम्पत्ति का प्रतीक है।
7- ईशान कोण में रसोई घर न रखें वरना घर में अशांति, कलह व धन हानि होने की संभावना रहती है।
8- घर का जल ईशान दिशा से बाहर निकालें। फर्श का ढलाव भी ईशान कोण की ओर रखें।
2:02 AM
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