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सहकर्मी के परिवार से भी मेलजोल बढाये
एक सर्वेक्षण के दौरान जब पूछा गया कि क्या आप अपने कर्मचारियों के परिवार वालो, माता पिता या भतीजी-भांजियों की यहां तो बात ही नहीं है, उनकी पत्नी और उनके बच्चो के बारे में कुछ जानते है,यानि उनसे परिचय है, तो प्रत्येक १०० वरिष्ठ प्रबंधकों में से ९८ ने 'नही' में जवाब दिया|
यूरोप और अमेरिका में लगभग हर कंपनी इस सिलसिले में सर्वे करती है| किसी भी कंपनी में मोटे सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि साल में शायद ही कभी कोई कर्मचारी अपने सहकर्मी के घर एक बार खाने-पीने के लिए गया हो|
लेकिन मनोवैज्ञानिको का कहना है है कि अपने सहकर्मी के परिवार के सदस्यों के साथ भी डिनर के दौरान थोड़ा भी समय गुजरने से, कार्यस्थल पर कामकाज के समय उस सहकर्मी के व्यवहार को समझने में काफी मदद मिलती है | जब एक   कर्मचारी अपने मैनेजर  से आकर कहता है कि उसकी बीवी या बच्चे कि तबियत  ठीक नही है या उनके साथ एक हादसा हो गया है , तो मैनेजर की आँखों के सामने पूरा दृश्य  घूमने लगता है और वह जो निर्णय लेता है, वह सद्भावनापूर्ण और व्यावहारिक होता है|
इसका मतलब यह भी नही कि एक ही ऑफिस के कर्मचारी से हर सप्ताह या माह में मिलें| गेट-टूगेदर,पिकनिक या मौज-मस्ती भरे डिनर पर ६ माह में एक बार चुनिन्दा ही सही कर्मचारियों कि मुलाकात एक-दुसरे को समझने में काफी दूर तक सहायक साबित होती है |
फंडा यह है कि अपने महत्वपूर्ण कर्मचारियों के परिवार से जब-तब नियमित रूप से मिलने का मौका निकाले | यह कार्यस्थल पर कामकाजी माहौल को काफी अनुकूल बना सकता है |

सफलता के तरीके

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