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संगती

एक वृक्ष पर दो तोते रहते थे| दोनों सगे भाई थे|एब बार बहुत ज़ोर कि आंधी आई और दोनों को उड़ाकर ले गई| एक चोरो की बस्ती में जाकर गिरा,और दूसरा ऋषियों के आश्रम में| दोनों अपनी जगह पर पलने लगे | धीरे-धीरे अनेक वर्ष बीत गए| एक दिन वहां का राजा आखेट के लिए निकला| आखेट करने के बाद वह विश्राम के लिए एक सरोवर के किनारे रुक गया| उसे नींद आ रही थी,किन्तु किसी तोते की कर्कश वाणी से नींद टूट गई| तोता कह रहा था-अरे कोई है? इस आदमी के पास बहुत सारा धन है| इसका गला दबाकर इसे मार डालो और सब कुछ लुट लो| यह सुनते ही राजा तुरंत वहां से निकल पड़ा|राजा रथ को तेज़ गति से दौड़ाता हुआ ऋषियों के आश्रम में पहुंचा | वहां कोई नही था| राजा इधर-उधर देख ही रहा था कि किसी तोते कि मधुरवाणी सुनाई दी-आइए राजन,ऋषि-मुनि भिक्षाटन  हेतु गए है| आश्रम में शीतल जल व फल मौजूद है| आप उनका सेवन कर अपनी थकान मिटाए| राजा ने चकित हो उससे कहा-तुम्हारे ही जैसा एक तोता कुछ देर पहले मुझे मारकर लूटने कि बात कह रहा था और तुम प्रेमपूर्ण वार्तालाप कर रहे हो| तुम दोनों में कितना फर्क है| तोते ने कहा-राजन, वह तोता मेरा भाई है| चोरो कि संगत में रहने के कारण वह सदैव हत्या और लूटपाट कि बात करता है और मैंने ऋषियों के साथ रहकर प्रेम व सदाचार सीखा है|
कहानी का मर्म यह है कि संगती का प्रभाव अनिवार्य रूप से व्यक्तित्व पर पड़ता है| हमे सुसंगति सदाचरण कि ओर तथा कुसंगति  दुराचरण कि ओर ले जाती है| मनुष्य को अच्छी संगत में रहना चाहिए|


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